सोमवार, 19 जनवरी 2015

धर्मगुरुओं की अज्ञानता और कुतर्क पर प्रश्न चिन्ह

This is a comment on the newspaper report published in 

आज जब हर संसाधन में कमी हो रही है, प्रकृति के अतिदोहन के कारण पर्यावरण और पारिस्थितिकी असंतुलित हो चुकी है, जल की कमी से मानव जीवन पर अतिगंभीर संकट की स्थिति सामने है ऐसे समय में बदरीआश्रम के शंकराचार्य बासुदेवानन्द सरस्वती जी का आबादी में  निरंतर और उच्चे दर पर वृद्धि का दस दस बच्चे पैदा करने का का सुझाव समाज में कितनी तबाही मचा सकती है यह सिर्फ कल्पना करने की बात नही रही. इसका नतीजा सिर्फ भुखमरी, मारकाट, कुव्यवस्था, अज्ञान में वृद्धि और पूणर्रूप से महिलाओं के विरुद्ध है. बदरीआश्रम के शंकराचार्य का यह सन्देश एक खाली दिमाग की उपज ही हो सकती है. यह और भी आश्चर्यजनक है कि वे ऐसी बयानबाज़ी एक व्यक्तिविशेष को भारत का प्रधानमंत्री बनाए रखने के लिए  कर रहे हैं. प्रथम वाक्य से लेकर अंतिम पूर्णविराम तक यह कुतर्को और नासमझी भरा पड़ा है. आशा है प्रधानमंत्री सहित कोई भी राजनितिक नेता शंकराचार्य महोदय का यह आग्रह और सुझाव पूरी तरह से ख़ारिज करनेवाला बयान देगा जो आर्थिक संकट और असंतुलन को बढ़ाने के अलावा महिलाओ के शरीर और स्वास्थय से खिलवाड़ करने के लिए एक प्रेरणा बन सकती है जो सर्वथा अमानवीय है. आज के समय में ऐसी सस्ती बयानबाजी करनेवाले हर व्यक्ति का आम जनता द्वारा विरोध होना चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म का हो और धार्मिक पद पर स्थापित हो. 
धर्मगुरु शायद यह भूल गए हैं कि धर्म और समाज दोनों की प्रगति और रक्षा के लिए संख्या सिर्फ एक पैमाना है मानव जाति में सद्गुणों का होना उससे ज्यादा आवश्यक है. हमारी पौराणिक कथाओं में कपिल मुनि का भी जिक्र है जिन्होंने राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों को भष्म कर दिया था क्योंकि वे अत्याचारी और नालायक थे. इसी कहानी का अगला नायक इन्ही राजा सगर के प्रपौत्र भगीरथ थे जिनके नाम से गंगा का एक नाम भागीरथी भी है जिनके पुण्य प्रताप और अच्छे कर्मो से इस देश का कल्याण और समाज की रक्षा हो रही है. अतः धर्मगुरु संख्या में नहीं, पैदा हुए बच्चों में सद्गुणों की बात करें। 
-
सरिता कुमारी 


कोई टिप्पणी नहीं: